मां
हाँ बहुत करती हूँ प्रयास कर नयन बन्द ईश्वर वंदन को
न जाने क्यों अनायास ही तेरी य़ाद चली आती है माँ …..
कि कैसे हर पल मुझको तुम बैठाकर सब समझाती थी
क्या नैतिक और अनैतिक है बात मुझको बतलाती थी l
हाँ नहीं बहुत दूर तुम मुझसे फिर भी मैं आ नहीं पाती हूँ
बस हररोज की कशमकश में मैं माँ बस उलझी रहजाती हूँ l
नीलम शर्मा