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4 Nov 2018 · 1 min read

****मां*****

*** *** मां *****

शब्दों में बांध सकूं ,मेरी इतनी औकात नहीं

*मां *सिर्फ शब्द नहीं ,

*मां *अनन्त ,अद्वितीय ,अतुलनीय है

*मां *धरती पर परमात्मा का वरदान है।

*मां *धरती पर ,फरिश्ता ए आसमान है ,

मांदुआओं को खान है

*मां *अन्नपूर्णा ,”मां”सरस्वती,

*मां *बनकर बच्चों का सुरक्षा कवच

हर कष्ट से बचाती है,घोर तिमिर हो,या फिर

विपदाओं का सैलाब,

बनकर ढाल खड़ी हो जाती है।

देवी, दुर्गा, काली,मां बन सरस्वती

शुभ संस्कारों के ज्ञान के बीज बच्चों

में अंकुरित करती जाती है ।

*मां *करके हृदय विराट, वसुन्धरा की भांति

कष्टों के पहाड़ झेल जाती है ।

मां रानी होकर भी ,बच्चों की परवरिश की खातिर दासी की भांति पालना करती है ,बच्चों की उज्ज्वल भविष्य के लिए हर मुश्किल से लड़ जाती है ।

स्वयं कांटो में सोती है बच्चों की राहों में पुष्प ही

पुष्प बिछाती है ।

मां हमराज,हमसफ़र ,हमदर्द ,मां , बहन,बेटी

सच्ची सहेली भी होती है।

*मां *जो भी होती है ,आसमानी फरिश्ता होती है ********

ऋतु असूजा , स्वरचित रचना
शहर:- ऋषिकेश (उत्तराखण्ड)

7 Likes · 33 Comments · 832 Views
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