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1 Nov 2018 · 1 min read

मां

मां का तो आंचल बना है,
अश्रु पी जाने के लिए।
नयनोंं मे सागर रूका है,
ममता बरसाने के लिए।

ढेरों मन्नत मांग कर ,
मां बसाती है जो आशियाने।
वही मां उलझन है क्यों,
उस आशियाने के लिए।

ठोकर लगे न दुनिया की,
मां पल-पल मन्नत बुने।
वही बालक क्यों छोड़ देते
ठोकरे खाने के लिए।

प्रेम की प्रतिमूर्ति नारी,
दुनिया में ये सब कहें।
फिर मचलता उसका ह्रदय क्यों,
प्रेम पाने के लिए।

सोचकर ये मन मेरा,
आज फिर अतृप्त है।
शब्दों की जननी जो मां है,
क्यों सदा निशब्द! है।

ममता महेश
खानपुर दिल्ली

13 Likes · 72 Comments · 898 Views
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