~ मां ~
श्रद्धा से हूं शीश झुकाता, मैं वंदन करता हूं ।
सारे मातृ शक्ति के चरणों में, मैं नमन करता हूं ।।
चरणों में हो स्वर्ग जहां, हर दुःख हो जाए दूर ।
मात्र एक स्थान है वो, मां के चरणों की धूल ।।
जहां धूप में भी छाया का,सुख हमको मिलता है ।
जीवन के हर दर्द का मरहम, जहां हमें मिलता है ।।
बगिया के हर फूल के , मुरझाने का कारण जाने ।
मां ही वो माली है, हर फूल का दुःख पहचाने ।।
जब प्रभु ने ब्रह्माण्ड रचा ,तब सोचा होगा प्रभु ने ।
हर जीवन के साथ उपस्थित, कैसे रह पाऊंगा मैं ।।
ऐसा किसे बनाऊं जो, मेरी प्रतिच्छाया सा हो ।
जो मुझ जैसा ध्यान रखे, करुणामय मुझ जैसा हो ।।
गहरे ध्यान में डूबे प्रभु, एक छाया सी तब देखा ।
ध्यान भंग तब हुआ प्रभु का, मुख से मां, मां फूटा ।।
मां की रचना किया था प्रभु ने,आनंद में खुद खोए थे ।
ऐसा पवित्र अहसास था कि, प्रभु अब निश्चिंत हुए थे ।।
ममता सौंपा प्रभु ने, जन्म की जिम्मेदारी सौंपी ।
दया, करुणा या प्रेम, सारे भावों को प्रभु ने दे दी ।।
दे दिया स्वर्ग चरणों में, तीनों लोक बसाया मां में ।
ऐसी पावन छवि को देख, प्रभु खुद को रोक न पाए ।
मां की ममता पाने को, वसुधा पे जन्म ले आए ।।
मां के होने भर से ही, घर हो जाता है मंदिर ।
मां की महिमा को, शब्दो में बतलाना मुश्किल ।।
✍️ प्रियंक उपाध्याय