मां
मां है एक अनन्य कलाकार,
निभाए सभी तरह के किरदार ।
बच्चों के लिए है प्रथम गुरु ,
शिक्षा की बुनियाद होती जहां से शुरू।
खेले साथ रहे ऐसे,
बचपन के अंतरंग दोस्त हो जैसे।
रसोई में जाए तो बने बावर्ची,
पकवान बनाती हर तरह की ।
कपड़ा फटे तो बन जाती दर्जी,
बगीचे को संभालती एक माली की भांति।
बर्तन मांजना, कपड़े धोना, पोछा लगाना इत्यादि ,
छोटे से छोटा काम मां तुरंत कर देती ।
लोड़ी भी सुनाए प्यार भी करे ,
हर परिस्थिति में परिवार के साथ रहे ।
पुजारी के समान घर में,
महकाती है पूजा-अर्चना से।
हम सब के लिए मां कितने ही यत्न करती सदा,
मां को खुश रखना दायित्व है हमारा।
उत्तीर्णा धर