मां
माँ
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सबसे प्यारा और अनोखा !
रिश्ता अपनी “माँ” का है |
तीनों लोक समा जाएेंगें…..
ऐसा आँचल ” माँ ” का है ||
जननी बनकर जन्मा है
और सद्गुण से पाला है |
आए कोई आफत हम पर !
वो बनी हवन की ज्वाला है ||
भरी लबालब ममता से ,
कोई कोना ना रीता है |
वो बसी है……
कुरान-बाइबल में !
“माँ ” ही कर्म-ए-गीता है ||
माँ के चरणों में मंदिर है ,
हाथों से बहता है आशीष |
सारे तीरथ फीके पड़ते |
देखो करके नीचा शीश ||
अपना व्रत कभी ना तोड़े !
चाहे टूटे सकल शरीर |
“माँ ” की ममता और हिम्मत से ,
बदली कितनों की तकदीर ||
छवि निराली उज्ज्वल-उज्ज्वल ,
तन-मन से माँ सबला है |
माँ के पैरों में जन्नत है !
माँ काशी , माँ कर्बला है ||
जिसकी छाती से फूटी !
अजस्त्र अमृत की धारा |
मानव-बीज पला है उसमें !
फलित हुआ ये जग सारा ||
अनमोल धरोहर अपनी माँ !
दुर्लभ है बनना सदासहाय |
या तो ईश्वर या धरती है !
या सम उसके अपनी माय ||
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— डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”
ग्राम-पोस्ट- ढ़ोसी
तहसील-खेतड़ी
जिला – झुन्झुनू (राजस्थान)
पिन – 333036
मो० – 9461535077