मां
लहू उसका पी रहा था भ्रूण वो।
उदर रुपी व्योम में, हो रहा था पूर्ण वो।।
नौ महीने तक चला, त्याग का ये सिलसिला।
रखके जीवन दांव पर, प्रेम रूपी शिशु मिला।।
दर्द सारे अश्रु बनकर बह गए।
मृत्यु की पीड़ा भी हंसकर सह गए।।
गढ़ना था पाषाण, तो छीनी उठा ली हाथ में।
छुप के रोना, सख्त रहना, हसना खाना साथ में।।
कर दिया तैयार वो हथियार जो मौलिक भी था।
बेटा भाई चाचा ताऊ और एक सैनिक भी था ।।
मां थी घर, बेटा था रण में।
थे अडिग दोनो ही प्रण में।।
था खड़ा सीमा पे वो फौलाद बनकर।
अपने त्यागी मां की वो औलाद बनकर।।
दे दिया सारा लहू मां भारती को शान से।
हां बढ़ाया मां का गौरव, फूल जैसे प्राण से।।
मां बोली, तू कर गया जीवन में वह काम।
उरीन हूवा बेटा मेरा, सफल कर गया नाम।।
🔥 मांओं को समर्पित 🔥