मां
पकड़ के डोरी जब तु झुलाए, मिठे-मिठे लोरी से मुझको सुलाए।
मैं भी तेरी गोद में सिर रख लु आज, आ जा ना मां तु इस बार।।
मन मेरा रोए मन मेरा खोये, पाऊ ना तुमको देखूं चहू ओरे।
मिलने की आस में नयन मेरे बार-बार रोए।।
रातों में आकर मुझको सुलाती हो, सुबह होने से पहले कहां चली जाती हो।
उठ कर मैं जब तुम्हें देख ना पाऊं, होकर बेचैन हर डगर तक मैं जाऊं।।
आखिर तु है कहा मैं हूं कहां, बता देना मुझको ओ मेरी मां …….
दिन की पुकार जाती नहीं है क्या तेरे पास।
शाम ढलते ही लगीं रहती है तेरे आने आस।।
रोकता है कौन तुम्हे आने पर मेरे पास।
दिन भर ढुंढता है ये मन मेरा उदास।।
आखिर तु है कहा मैं हूं कहां, बता देना मुझको ओ मेरी मां …….
क्या है तेरी मजबूरी, क्यों है हम-दोनों मे इतनी दूरी।
कौन हैं वह राह जो जाता है तेरे पास, जाहां पाकर तुमको मन होता नहीं मेरा निराश।।
आखिर तु है कहा मैं हूं कहां, बता देना मुझको ओ मेरी मां …….
संग संग खेलते खेल बहुसारे, मन ना होता फिर कभी उदास।
मेरे मन की बस यही है आस, आ जाती मां तु सिर्फ मेरे पास…..
आखिर तु है कहा मैं हूं कहां, बता देना मुझको ओ मेरी मां …….
पुतुल कुमारी