मां… रब का स्वरूप निरा
माँ..सुना है मैंने,तुम्हारी आँखें हुई थीं नम,
जब देखा था तुमने, मुझको पहली बार l
सब कहते हैं..एक प्यारी-सी,
अद्वितीय मुस्कान थी, होंठों पर तुम्हारे;
जब लिया तुमने मुझको,गोद में पहली बार l
यूँ तो जग में आने से पहले भी,
बातें अक्सर करते थे हम,
पर दिखता न था रुप तेरा;
तेरी बाहों में आकर जाना,
है रब का तू स्वरूप निरा l
कितनी अंजानी थी,कितनी दीवानी थी..
अब सोचकर भी हंसी आती है ;
कोई बोल दे हंसी में भी अगर.
“तुम्हारी नहीं मेरी माँ है ”
कैसे आँख मेरी भर आती थी l
यूँ दूर कहाँ है मुझसे तू ,
जब भी परेशान मुझे पाती हो..
ख़्वाबों में आकर मेरे माँ,
तुम आँसू पोंछ जाती हो,
मेरे आँसू पोंछ जाती होl
कुलदीप कौर,
पंजाब