मां,, मन तुम्हारा बड़ा ही होगा
मेरे जन्म से पहले भी मां
मन तुम्हारा बड़ा ही होगा ,,
चेतना अपनी मुझमे भरकर
जीवन जब तुम रचती होगी ,,
नाम मां तुम्हारा तब पड़ा ही होगा ,,
लोभ ईर्ष्या क्रोध के कुसंगत से
तरूण व्यक्तित्व मे मेरे जो विकृति थी आई ,,
मुझे बचाने को मां, तुम मरूभुमि मे नीर ले आई ,,
कभी कोमलता कभी क्रोध मिश्रण से
नैतिकता और मौलिक न्याय सिखाया ,,
आवरण दुलार का बनकर
क्रूर जीवन का संघर्ष दिखाया ,,
परदेस मे बैठा तुमसे मीलो दूर हूं ,, मां
तुम्हारी बोली से बस ,, पोषण पाता हू ,,
पांव दबाता हू तुम्हारे तो
सफलता पर आरोहण पाता हूं ,,
हर अंर्तद्वंद का उत्तर हो मां,, तुमसे परे कोई ज्ञान नही
तुम्हे पन्नो पर उतारू कैसे,, कलम मे इतनी जान नही ,,
सदानन्द कुमार
समस्तीपुर बिहार