मां की जिम्मेदारी
आज मैं एक कहानी सुनाती हूं,
एक मां और उसके बच्चों की दास्तां बताती हूं।
आज मां किसी बस अड्डे व रेलवे,
स्टेशन पर बैठी है बेसहारा होकर।
कभी वक्त था वो उठती थी हमें सहारा देकर।
आज जेब में पैसा है एक लम्बी गाड़ी है,
पर हमें इस लायक बनाने वाली लगती,
बड़ी मुश्किल सी जिम्मेदारी है।
आज हमें पूरी दुनिया सलाम करती है,
लेकिन जिसे ये सलामी मिलनी चाहिए
वो अकेली तन्हा -सी रहती है।