मां का महत्त्व
मुंह से निकली बच्चे के पहली पुकार है “मां”
आदि और अंत संसार का होती है “मां”
आगे जिसके पूरी दुनिया छोटी लगती वो है “मां”
आगे जिसके रिश्ते सारे फीके लगते वो है “मां”
सर्दी, खांसी, जुखाम से बच्चों को बचाती है “मां”
पिता को डांट से बच्चों को बचाती है “मां”
घर परिवार को साथ लेकर चलती है “मां”
पूरे संसार को एक धागे में पिरोकर रखती है “मां”
बच्चो की मुस्कान और पहचान होती है “मां”
बच्चो के सिर का ताज होती है “मां”
आदर्श एक परिवार को बनाती है “मां”
बच्चो को संस्कार सिखाती है “मां
बच्चे के सिर पर ठंडी छाया होती है “मां”
बच्चे की राहों में बिछे फूल होती है “मां”
बच्चो के अच्छे भविष्य के लिए कमाता है “पिता”
बच्चो का अच्छा भविष्य बनाती है “मां”
बच्चे की प्रथम गुरु और भगवान होती है” मां
मंदिर, मस्जिद में भगवान पूजे जाते है
घर-घर पूजी जाती है” मां
धन्य है वो जो कहता भगवान है “मां”
पूजा हरदम है करता भगवान की तरह
मानव नहीं वो दानव है जो परेशान करता है “मां”
वो मानव ही महामानव है जो पूजा करता है “मां”