मां का प्रेम
मां ने मुझको जन्म दिया कहती मुझको प्यारा लाल
इतना मुझको प्यार दिया नहीं देखा क्या है अपना हाल
जब भी रोने की आवाज है सुनती पास मेरे आ जाती थी
तुरंत गोद में अपने लेकर दूध पिलाने लगती थी
जब मैं नन्हा मुन्ना था हर पल पास वो रहती थी
चोट मुझे लग जाने पर मलहम खुद बन जाती थी
मैं हूं भूखा पता नहीं फिर भी दूध पिलाती थी
चल चल कर गिर जाता था जब पैर मेरे थक जाते थे
मां मेरी गुस्से में आकर धरती मां से लड़ जाती थी
रोने की आवाज मेरी सुन मां का दिल रो पड़ता था
स्वर्ग जैसे आचल में मुझको चुप कराती थी
प्यारे प्यारे हाथों से चुप कर खाना मुझे खिलाती थी
मैं हूं उनका दिल का टुकड़ा सब को वो बतलाती थी
संजय कुमार✍️✍️