मां।
उसके निर्दोष नयनों में,
उत्साह की चमक थी,
उसके दोषरहित मुखड़े पर,
निश्छल प्रेम था,
भय , लाज , झिझक,
न ऐसा कोई विचार था,
जब उसने मेरे गले में,
बाहें डाल कर कहा,
आओ मैं तुम्हे प्यार कर लूं,
तुम मेरे पुत्र हो,
मुझे वह पल अदभुद लगा ,
मैं उसे अपलक देखता रह गया,
मेरी पुत्री को,
जो मात्र पांच साल की है,
मुझे लगा पूरा हो गया वृत्त का आकार ,
मैं उसका पिता और वह नन्ही सी जान,
मुझे कह रही थी अपना बेटा,
उसके लिए यह मात्र खेल था,
पर मेरे लिए था,
सत्य से साक्षात्कार।
Kumar kalhans.