मांग रहा अंमबा की छांव
भरी दुपहरी दूर है गांव
सूनी डगर नहीं है छांव
तप्त धरा और नंगे पांव
जलता तन मन ढूंढे ठांव
मांग रहा अंमबा की छांव
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
भरी दुपहरी दूर है गांव
सूनी डगर नहीं है छांव
तप्त धरा और नंगे पांव
जलता तन मन ढूंढे ठांव
मांग रहा अंमबा की छांव
सुरेश कुमार चतुर्वेदी