**माँ**
मांँ, तू जीवन दात्री, तू ही है भगवान,
मुझमें नहीं शक्ति करूं तेरा गुणगान।
मांँ, तू ममता की मूरत अतुल्य अनुपम,
किसी भी हाल में तेरी ममता न हो कम।
मांँ, तुझसे ही जीवन, तुझसे ही संस्कार,
तू ही प्रथम गुरू, जीवन का करे उद्धार।
मांँ, तू अंतर्मन भी मेरा पहचान लेती है,
बिना कहे तू मेरा ख्याल रखती है।
मांँ, संकट में मुझे बस तू याद आती है,
चिंता से घिरूं तो साथ तुझे पाती हूँ ।
मांँ, मेरे कानों में गूंजते सदा तेरे बोल हैं,
कठिन से कठिन क्षणों में देते रस घोल हैं।
मांँ, तेरी ममता तेरा धैर्य याद आता है मुझे,
तुझसे दूर होने पर यही संबल बंधाता मुझे।
मांँ, तुम साथ न होकर भी साथ होती हो,
तुम मेरे शरीर में हृदय बन धड़कती हो।
मांँ, तेरी ममता को मांँ बनके समझ पाई हूँ,
मांँ बनकर भी मैं बड़ी नहीं हो पाई हूँ।
मांँ, तू मेरी शक्ति और तू ही सहारा है ,
मांँ, तुझसे ही मेरा ये परिचय सारा है।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित (मौलिक)
जयपुर, राजस्थान