मांँ मैं तेरी परछाई हूंँ !
तेरे आंँचल में पली मांँ मैं तेरी परछाई हूंँ,
कैसी रीत है दुनिया की सब कहते हैं पराई हूंँ।
तुझको पाकर मुझको मेरा सुंँदर घर संँसार मिला,
खुशदिल चेहरे देखकर जाना खुशियांँ घर लाई हूंँ।
मैं हँसती तू हँसती थी माँ मैं रोयी तू रोई थी,
समझ न पाई कभी तेरे लिए क्या सौगात लाई हूंँ।
भाई भी तो दिया तूने ही जैसे सुंँदर कोई उपहार,
दोनों तेरे ही बच्चे फिर मैं ही क्यों यहांँ पराई हूंँ।
लो चली पीय के घर आंँगन छोड़ तेरा घर संसार,
रोकर न यूंँ विदा करो मांँ आशीर्वाद लेने आयी हूंँ।
दिल में छुपा लो अपने मांँ ये रीत वीत न समझे “दीप”
तेरे नाम से ही जानी जाऊंँ मैं तेरी ही जाई (बेटी)
हूंँ।
©️ कुलदीप कौर”दीप”