माँ
माँ
निश्छल नदी की अविरल धारा ,भव सागर में एक किनारा ।
रेगिस्तान में जल की धारा, हम बच्चों का एक सहारा ।
बेचैनी में चैन वो देती,गुस्से से वो डांट भी देती
सुबह की पहली किरण में माँ हैं, प्यार के आदि से अंत में माँ हैं।
ऐसा ही भगवान हैं करते ,माँ में ही भगवान हैं बसते
पीड़ा सहकर जन्म दिया, भूखे रहकर हमें खिलाया
खुद से ही संस्कार दिया, तिरस्कार ले प्यार दिया
उड़ने को आकाश दिया, अंधकार में ‘प्रकाश’ दिया
देश का खून बहाने वालो, नफरत हिंसा फैलाने वालों ।
सता रहे जिस माँ को हम सब, एक ही माँ से जन्म लिया ।
जन्मभूमि है हिंदुस्तान, उसको भारत मां नाम दिया ।
माँ अगर कष्ट में होगी तो, बेटा कैसे खुशहाल रहेगा ।
आज एक संकल्प करें हम, मात -पिता को नमन करें ।
किसी की माँ न भूखी सोये,हम सब उनका सम्मान करें।
बहते रहे ये प्यार की धारा , हँसी खुशी हो जीवन सारा ।
ज्ञानी ध्यानी शास्त्र ये कहते, माँ में ही भगवान हैं बसते ।
-राहुल प्रकाश पाठक “प्रकाश”
जिला -कटनी (मध्यप्रदेश)