माँ
माँ के संग बीते लम्हों के पन्नों को मै खोलूँगी,
बचपन की मीठी यादों के रस कविता में घोलूँगी,
रातों को जब बचपन में मुझे नींद न आया करती थी,
माँ थपकी देकर लोरी गाकर मुझे सुलाया करती थी,
जब ज्वर या पीड़ा हो मुझको माँ रैना जाग बिताती थी,
गोद में अपने सिर रख कर माँ प्यार से हाथ घूमाती थी,
एहसान तुम्हारा है जननी सुख भोग रही मै जीवन का,
यह सौभाग्य है मेरा माँ जो पुष्प हूँ मै इस उपवन का,
स्वस्थ रहें हम रहें सुरक्षित सदा दुआएं देतीं हैं,
किस्मत वाले हैं वो जिनके घर माताएँ होतीं हैं,
चारों धाम के फल मिल जाते स्वर्ग है माँ के चरणों में,
माँ की ममता भेद न करती कभी जाति और वर्णों में,
भारतीय संस्कृति का दर्पण बन गाँव सदा ही बना रहे,
माँ के ममतामयी आँचल का छाँव सदा ही बना रहे।
ज्योति राय
सिंगरौली