माँ
माँ
याद मुझे वो दिन आया, पी जी आई में देखी काया
अभी प्रसव से पुत्र जना, अभी माँ को बाहर लाया
चिपका हुआ माँ के स्तन में, माँ अचेत पर पुत्र को साधे
देखा दृश्य मैं रोक न पाई , दौड़ तेजी मैं आगे आई
सिस्टर गिर जायेगा अवोध ये, मैंने उसको दिया हिलाई
तनिक न चेतना वापिस आई, पुत्र को कस सीने से लगाई
सिस्टर हंसकर बोली ये माया, मौज इसे समझ न पाया …..
कई बार टूट जाए पुरुष, जननी जब जन्म देती है
सह अथाह कष्ट स्वयं से, नवीन कृति हम को देती है
मैं हैरान देखती रह गई , अचेत चेतना के दिव्य रूप को
माँ तू सचमुच अतुलनीय है प्रणाम तेरे हेरेक रूप को
तब तक डॉक्टर भी आ गया , देख मेरी हालत मुस्काया
मैं अपलक सोचती रह गई , स्त्री तू श्रेष्ठ क्यों कही गई
जिसके अचेतन मस्तिष्क में, हो न कहीं शिशु कष्ट में
माँ को देखा रोते हंसते , संतान के ही लिए जीते मरते
गंगा जशोदा जीजा मदालसा पन्ना जयंता को हम पढ़ते
कितना अदभुत तुझे बनाया, आह पीढ़ में कितना पाया