माँ
माँ
वह हमारी खातिर..,
मौत से लड़ जाती है |
जब जाकर हमारी,
देह में प्राण लाती है |
छोटी छोटी विपदा हो,
दुनिया से लड़ जाती है |
साहस निडरता त्याग ,
हमें मा ही सिखाती है |
क्या बताऊं तुमको
यह मां कहां से आती है
सूखी सूखी बगिया मैं
मानो सावन लाती है
जब जब मन बगिया में
पतझड़ मोसम आता है
मां के चेहरे पर आलम,
अलग-ही छा जाता है |
उसके चेहरे पर मानो ,
ग्रहण सा लग जाता है |
हमारी खातिर खुशियां,
कहां-कहां से लाती है |
पिता के बटुए चुराकर,
जब नोट हमे थमाती है |
जब भी बीमारी आती है,
रात – भर जग जाती है |
जैसे मानो बीमारी को,
लड़कर स्वयं भगाती है |
पतंग की डोर यारो,
मां अगर थमाती है |
उसकी तरक्की यारों ,
सारे जहां हो जाती है |
ईश्वर भी है नतमस्तक ,
मां आखिर मां होती है |
क्या बताऊं तुमको यार
यह मां कहां से आती है
सूखी सूखी बगिया मैं ,
सावन यह ले आती है |
धरती अंबर का मेल,
आपस में कराती है ||
✍कवि दीपक सरल