माँ
ठिठुरती ठंड में
निठुरती अंध में
चूल्हे पर तवे चिमटे
हाथ सिमटे…
आग की लपटों से बचती,
रोटियां सेंकती माँ |
बरतनों का ढेर
देर सबेर
बच्चो का शोर
क्रोध घनघोर
डांट देती , फिर …
खुद ही मनाती माँ |
रामायण की चौपाई मुंहजबानी
सुनी सुनाई गीता की कहानी
अनपढ़ फिर भी
समझदारी की
सीख सिखाती माँ |
दिन ढले रात तले
बिन खले…बात चले
बात… कभी लाडले भविष्य की
बात … कभी दृश्य अदृश्य की
झड़प देना हमारा
डांट देना हमारा
पीड़ा सहती … सिसकियां भरती
चुप रहती … झपकियां भरती
सो भी नहीं पाती माँ |
अपने मे सिमटी..
ममता बिखेरती
लक्ष्मी , सीता , पतिव्रता
काली तो कभी सती माँ |