माँ…!
जब कभी बाहर से घर लौटती थी,
पुरे घर में माँ-माँ चिल्लाया करती थी,
तब तुम किसी कमरे से भागती हुई आती थी,
और गले से मुझे लगाया करती थी,
तुम अक्सर कहती थी,
लड़कियां पैर नहीं छूती,
मैं भी बिना तुम्हारे पैर छुए,
घर से नहीं जाया करती थी,
जब तुम मुझसे नाराज़ हो जाया करती थी,
तब मैं घंटो-घंटो तुम्हारे,
बोलने का इंतज़ार करती थी और,
तुम मान जाया करती थी,
इस दुनिया ने मुझे प्यार करना नहीं सिखाया माँ,
प्रेम तो मुझे जन्म लेते वक़्त हुआ था ,
जब तुमने मुझे पहली बार,
अपनी गोद में उठाया था…!
~ गरिमा प्रसाद 🥀