माँ
रात भर जागकर वो
अपने बच्चों को सुलाती है,
बच्चों को दे सूखा बिस्तर
खुद गिले में सो जाती है ।
बच्चों को खाता देख वो
पेट अपना भर लेती है,
बच्चों के मोहक खेलों में
वो अपना बचपन जी लेती है ।
बच्चों के एग्जाम में
वो ऐसे घबरा जाती है ,
मानो उसके बच्चे नहीं
वो खुद ही परीक्षार्थी है ।
देख परेशान बच्चों को
वो ऐसे बेसुध हो जाती है,
सारी समस्या का समाधान
वह ढूंढ जहां से लाती है ।
बेटी ब्याह कर के जब
अपने ससुराल जाती है ,
सच पूछो तो वो संग अपने
मां की परछाई ले जाती है।
दादी- नानी बन कर भी
उसकी चिंता कहां कमती है,
कभी बेटा कभी बेटी को
नेकी सिखाती रहती है।
ऐसी कोई उम्र नहीं जिसमें
मां की कमी नहीं खलती ,
शायद इसीलिए मां को
सारी दुनिया ईश्वर है कहती।
लक्ष्मी वर्मा ‘प्रतीक्षा’
खरियार रोड, ओड़िशा।