माँ
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माँ
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जन्म दे के सह रही है घोर दारुण पीर माँ ।
ओठ भींचे पी रही है आँसुओं का नीर माँ ।।
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हो गये कितने जमाने में बली बलवीर हैं ।
पालती है जन्म देकर के कलेजा चीर माँ
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माँडती है द्वार पे आती बहू जब साँतिये ।
मिर्च झोंके आग में काटे नजर के तीर माँ ।।
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कल बहू बोली नहीं शायद हुई नाराज थी ।
तो यकायक मौन होकर हो गई गम्भीर माँ ।।
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कल तलक जो झूलता था डाल बाँहें हार सा ।
आज उसको लग रही है पाँव की जंजीर माँ ।।
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कौर भी दिखता नहीं है हो गई लाचार अब ।
कौन उसके पास जाये है बुरी तस्वीर माँ ?
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हाँ ! पिलाया था कभी जो दूध वो कर्तव्य था ।
अब वही लगने लगी फूटी हुई तकदीर माँ ।।
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नर्क के पथ पे न जाओ स्वर्ग की है राह ये ।
दे दुआओं का खजाना है यहाँ की मीर माँ ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’
6- बैक कालोनी, महोली रोड़,
मथुरा-281001
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