” माँ “
” माँ ”
सातों अजूबों से भी ,
सुन्दर अजूबा ,
अपनी कोख में
बना लेती है ,
हर माँ ,
ममता के ,
सतरंगी धागों से ,
ताना – बाना बुन ,
एक रेशमी आचंल ,
ओडती है ,
हर माँ ,
जिसमे सात समन्दर ,
भर की खुशियां ले ,
अपने बच्चों पर ,
लुटा देती है ,
हर माँ ,
सातों सुरों के ,
सरगम की मीठी लोरी ,
अपने बच्चों को ,
सुना देती है ,
हर माँ ,
सप्त ऋषि तारा बन ,
अपने ध्रुव तारे ,
के मन की हर बात ,
अपने अन्तर्मन ,
में ही समझ लेती है ,
हर माँ ,
सतरंग भर-भर ,
इन्द्रधनुष सा ,
सुन्दर जीवन ,
बच्चों का ,
संवार देती है ,
हर माँ ,
सात जन्म ,
लेकर भी ,
जिसका कर्ज ,
नही उतार सकते ,
वो है ,
सिर्फ माँ ।
दीपाली कालरा