माँ
माँ ममता की मूर्त रूप है,
भू-मंडल से भी प्यारा
उसका आँचल है।
माँ तुलसी है मेरे आँगन की,
माँ पुनीत बरगद की छाया है।
माँ का अस्तित्व हैं आकाश से
भी ऊँचा,
माँ का मन निर्मल हिमगिरी सा।
माँ मेरे उपवन की हरी दूब है,
माँ तो फूलों की क्यारी है।
माँ ब्रम्हा रूप है आदिकाल से,
माँ की उपासना देव भी करते
युगों-युगों से।
माँ तो प्रेम करूणा की प्रतीक है,
माँ से ही तो हमारा वजूद है।
भगवान भले नाराज़ हो जाए
हमसे,
माँ कभी नाराज नही होती
अपने बच्चों से।
माँ अपनी संतान की रक्षा के
लिए दुनिया से लड़
जाती है,
माँ चाहे जितने कष्ट सह ले अपने
बच्चों पर आंच नही
आने देती है।
माँ सर्वोपरि हैं इस जग में
महान है माँ की गाथा,
माँ की अर्चना स्वयं करते इस
जग के नियंता।
भूल कर भी न कभी करना
माँ का निरादर,
क्योंकि माँ के चरणों मे
मिलता चारधाम करने
का फल।
स्व रचित एवं मौलिक-
आलोक पांडेय गरोठ वाले