माँ
भगवान ने जब खूबसूरत दुनिया बनाई,
तो एक नई युक्ति उसके दिमाग में आई।
वो हर किसी को खुश नहीं कर सकता,
इसलिए उसने एक सुन्दर मूरत बनाई।
उस मूरत की सूरत भगवान का दे दिया,
उस भगवान का नाम वो माँ रख दिया।
उस माँ के हृदय को समुद्र सा गहरा-
और धरती के समान विशाल कर दिया।
दुनिया की सारी प्रेम, वात्सल्य, ममता
माँ के हृदय में कूट-कूट कर भर दिया।
माँ शब्द लिखने से ही मुझे पयाम मिला,
माँ मिली तो जैसे की चारो धाम मिला।
माँ तो ममता की एक सच्ची मूरत है,
माँ की तो यहाँ हर किसी को जरुरत है।
माँ जीवन का एक सुखद अहसास है,
माँ कभी नहीं बुझने वाली एक प्यास है।
माँ गंगा की पवित्र निर्मल बहती धारा है,
माँ अपने बच्चों का एकमात्र सहारा है।
माँ फूलों में समाया खुशबू का वास है,
माँ एक खुशनुमा सुखद सी अहसास है।
माँ छलकता हुआ अमृत का प्याला है,
माँ भूखे बच्चों के लिए एक निवाला है।
माँ मस्तक पर लगी एक विजयी चुंबन है,
माँ कभी ना खत्म होने वाली आलिंगन है।
माँ की गाथा को क्या कोई लिख पाएगा,
माँ के लिए शब्दकोश भी कम पड़ जाएगा।
खुशनसीब होते हैं जो माँ के करीब होते हैं,
माँ के प्यार को तरसे वो बदनसीब होते हैं।
माँ का प्यार हर किसी पर नहीं बरसते हैं
माँ के प्यार को तो देव लोक भी तरसते हैं।
माँ ब्रह्माण्ड में घुमती हुई पृथ्वी की धुरी है,
माँ बिना तो सृष्टि की कल्पना भी अधूरी है।
?? मधुकर ??
(स्वरचित रचना, सर्वाधिकार©® सुरक्षित)
अनिल प्रसाद सिन्हा ‘मधुकर’
ट्यूब्स कॉलोनी बारीडीह,
जमशेदपुर, झारखण्ड।