माँ
खुलती ही आंखें, मैंने जमीं पर एक फरिश्ते को जाना ।
रातों में तेरा जाग कर, मुझे आराम की नींद सुलाना ।
नाश्ता हो या खाना, हर चीज मेरी पसंद का बनाना ।
और मेरी खातिर, हर किसी से लड़ जाना ।।
कुछ कहे बिना ही, मेरी जरूरतों को समझ जाना ।
खत्म कर अपनी ख्वाहिशें, मेरी जिदों को पूरा कर जाना ।
सुनना ताने मेरी खातिर, रिश्तेदारों और पड़ोसियों के ।
और मेरी छोटी सी कामयाबी में फुले ना समाना ।।
किसी वजह से घर आने में, थोड़ी देरी का क्या होना ।
बस तेरी आंखों का, घर के दरवाजे पर टिक जाना ।
और मिलते ही मेरी आहट, तेरे चेहरे का फिर से खिल जाना ।
मानो देखते ही मुझे,उसे किसी कीमती तोहफे का मिल जाना ।।
मेरी गलतियों को, अपने दामन में छिपाना ।
मेरी कामयाबी को सारे अहबाब को बताना ।।
और मेरे अच्छे मुस्तकबिल के खातिर ।
तेरा नमाजो में रो-रो कर, मुसल्ले को भींगा जाना ।।
सुनकर मेरी परेशानी, तेरी पेशानी पे सिलवटों का पर जाना ।
मेरे दर्द में, तेरे चेहरे पे गम का दिख जाना ।
फिर मन ही मन, खुदा से मिन्नतें और मुनाजात करना ।
और तेरी दुआओं के असर से, मेरी मुश्किलों का खत्म हो जाना ।।
माँ, खुदा का तेरे पैरों के नीचे जन्नत का बताना ।
और तेरा खुदा को, सारे कायनात का रब बताना ।
पता नहीं क्या सरोकार है, तेरा खुदा के साथ ।
पर मैंने तो बस जमीं पर, तुझे ही खुदा जाना ।।
✍✍✍ मोहम्मद शारिक अमीन