माँ
माँ त्यागी होती है।
दुनिया भी कहती है।
माँ सब कुछ देती है,
माँ बस वरदानी है।
यह बात पुरानी है।
अब और कहानी है।
माँ न्यायालय जाती।
यह मेरी निशानी है।
कोई बाप नही इसका।
लूँ नाम मै जिसका।
यह सन्तति मेरी है।
यह बात लिखानी है।
कचहरी सुनती है।
सुनकर के गुनती है।
फिर न्याय यही होता,
माँ ही खानदानी है।
नाते अब घिसटे है।
स्वार्थ में लिपटे है।
दिल में है मैल जमा,
सब रिश्ते बेमानी है।
त्याग पिता का भी अब।
मान ने लगा है रब।
भूल जाता दर्दो को,
वो बस इन्सानी है।
कलम घिसाई
मधुसूदन गौतम
9414764891