माँ
——-ग़ज़ल——
( माँ )
माँ की दुआ ने आज —–बनाया निडर मुझे
हर आफ़तो बला ——भी लगे बे असर मुझे
जब भी ये पाँव मेरे “—-“””बहकने लगें कभी
करती क़दम क़दम पे —है माँ बा- ख़बर मुझे
लेकर के माँ का नाम ——-हमेशा करूँ सफ़र
लगती नहीं है राह———– कोई पुरख़तर मुझे
क़दमों में अपनी माँ के ही -सब कुछ मैं वार दूँ
ख़िदमत में माँ की ——-उम्र लगे मुख़्तसर मुझे
देखा है मैनें सारे ————ज़माने को घूम कर
माँ की तरह मिला ———न कोई मोतबर मुझे
पतवार बनके माँ की ———दुआ साथ देती है
“प्रीतम” भँवर भी लगती—- सदा बे-असर मुझे
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)