माँ
माॅ ,करता तो होगा तुम्हारा मन भी,
कि घूम आऊ मायके, मिल आऊ अपने
माॅ बाबा से, भाई बहनो से और बचपन की
सखियों से,कर लू ढेर सारी बाते
पर जा नहीं पाई तुम कभी ज्यादा दिनो के लिए
माॅ कैसे कर लेती हो इतना कुछ
होगी कोई तो तुम्हारी भी पसंदीदा
सब्जी या चटनी,जिसे खाने का मन
करता तो होगा तुम्हारा भी
पर तुमने हमेशा बनाया बनाया वही जो
सबको पसंद था और बडे चाव से खिलाया भी
भूल गई अपने स्वाद को
माॅ कैसे कर लेती हो इतना कुछ
होती तो होगी तुम्हे भी थकान या ,पड़ती होगी बीमार तुम भी
पर शरीर की पीड़ा को कभी
चेहरे पर जाहिर नहीं होने दिया तुमने
और एक प्यारी सी मुसकान लिए
कर दिया अपना जीवन न्यौछार हम पर
माॅ कैसे कर लेती हो इतना कुछ
लेकिन माॅ केवल तुम ही कर सकती हो इतना कुछ
,क्योकि माॅ हो तुम
नाम मंजुला दूसी
हैदराबाद