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3 Jun 2023 · 1 min read

माँ

“माँ” मात्र नहीं कोई शब्द एक,
अनुभूति सरस अभिव्यक्ति चारु की,
शुचि मातृ-अंक सौभाग्य सुनिश्चित,
मानव जीवन के शैशवाँस का।

शुचि पंचम वेद अवनि के तल पर,
सुस्मृति मधुरतम मनस पटल पर,
रसधार प्रेम की माँ श्री नित्य,
शुचि अमिट छाप अन्तस्तल पर।

नित श्रद्धा और विश्वास गहन का,
सुपात्र अतुल्य महीतल पर,
“माँ” के अतिरिक्त कहाँ निज कोई,
विस्तृत आकाश,धरणि, ब्रह्माण्ड में।

माँ के पद पंकज मे सकल सार,
सहस्त्र स्वर्ग का सुख अपार,
कभी तिरस्कृत मत उसको करना,
वह नहीं कदापि स्कन्ध-भार।

ये जीवन,प्राण,स्वाँस भी तेरी,
प्रतिरूप ईश का माँ तू मेरी,
झलके छलके लोचन में प्रतिपल,
ममता, करुणा की छाँव घनेरी।

–मौलिक एवम स्वरचित–

अरुण कुमार कुलश्रेष्ठ
लखनऊ (उ.प्र)

Language: Hindi
1 Like · 197 Views

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