माँ
विषय- माँ
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माँ तुम हो
सृष्टि का मूल,…सृजन का सार
ब्रह्मा का अवतार, …और विष्णु का भी
क्यों कि, तुम्ही हो,..पालनहार
आँचल का विस्तृत वितान लिए
देती हो व्यक्तित्व को आकार
माँ…तुम शब्द भी हो
भाव को देती जो विस्तार
ज्ञान का सम्पूर्ण संचार
माँ, तुम हो ..अन्नपूर्णा
हमारी तृप्ति में ,होती हो तृप्त
हरदम रहती हो,चिंताओं में लिप्त
हमारे वज़ूद को देती हो इतना महत्व
की खुद का स्वत्व भुलाती हो
अपना सर्वस्व त्याग जाती हो
तुम्हारी ममता का चुकता नहीं उधार
माँ.. तुम ही हो
मानवीय संचेतना का
सर्वश्रेष्ठ उपहार !!
मूल हो सभी भावनाओं का,
इस प्रकृति का आधार।
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निरुपमा चतुर्वेदी
जयपुर