माँ
माँ
अचेत अवोध शिशु को, तू सीने से लगाया माँ
बड़ा किया उसको सींचकर, अपने खून से तू माँ |1|
सब सोते रहे, तू जागती रही, गुनुनाकर, लोरी सुनाकर
प्यार की थपकी देकर, मुझको तू सुलाती रही माँ |2|
ऊँगली पकड़ क़दमों पर, धीरे धीरे चलना सिखाया
संस्कार से सींच-सींचकर मुझे, इंसान बनाया माँ |3|
पढने –लिखने की प्रेरणा तुझ से मिली है माँ
आज जहाँ खड़ा हूँ, इसका श्रेय तुझ को है माँ |4|
तू ही जननी है मेरे अस्तित्व, मेरे अच्छे संस्कार की
तू ही ब्रह्मा, तू ही विष्णु, तू ही मेरे प्रथम गुरु है माँ |5|
कभी प्यार से, कभी शक्ति से, कभी तीक्ष्ण भृकुटी से
किया विनाश मेरे अवगुणों को, शिवा रूपी हो मेरी माँ |6|
तेरे चरण-कमलों में, सदा सर्वदा मेरे सर झुका रहे
जिंदगी के हर संकट में, मुझ पर तेरा आशीष रहे माँ |7|
कालीपद ‘प्रसाद’
हैदराबाद