माँ
माँ ममता की शीतल छाया,दरिया दिल होती है माँ।
घर वो मंदिर जैसा होता,जिस घर मे होती है माँ।।
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मीठी-मीठी लोरी गाती, थपकी देकर हमे सुलाती,
अपने आँचल की छाया में,सुंदर से सपने दे जाती।
मेरे हर तकलीफों पर तो, दर्द लिए रोती है माँ।
घर वो मंदिर…………………………… ।।
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मेरे ख़ातिर दुःख सह जाती,पर मुख सेकुछ न कह पाती,
सूखे बिस्तर हमको देकर,गीले पर वो खुद सो जाती।
त्याग तपस्या की प्रतिमूर्ति, निर्मल सी होती है माँ।
घर वो मंदिर…………………………… ।।
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दर्द जरा सा होता हमको,माँ की याद सताती है,
संस्कार के पथ पर देखो,माँ हीं हमे चलाती है।
कैसे होंगे वे सब बच्चे, जिनकी न होती हैं माँ।
घर वो मंदिर…………………………..।।
?अलका केशरी?