माँ
कोई शब्द नहीं जो
तुमको बयान करे
लेखनी की बिसात नहीं
जो तुम्हे परिभाषित करे
अम्बर ये कागद हो जाये
तब भी तुम लिखी न जाओ
तुम असीमित अपरिमित
रोम रोम मे समाई हो
तुम संबल बन साथ रहो
इतनी सी चाहत है
तुम्हारा ही प्रतिबिंब बनूँ
ये आशीर्वाद दे दो माँ ।
अनिता सुधीर श्रीवास्तव
लखनऊ