माँ
व्यापी माँ सम्पूर्ण जगत में
(सोलह मात्रिक संस्कारी जाति छन्द)
करलो, करलो माँ की पूजा।
माँ जैसा है और न दूजा।
माँ तो है दीपक की बाती।
जलती रहती दिन औ’ राती।
माँ के चरणों में जन्नत है।
पूरी करती हर मन्नत है।
माँ गंगा सम,जन जन तारे
जीवन,पालक सृष्टि सँवारे।
अष्टभुजी निर्मल मन वाली।
करती दुष्टों से रखवाली।
माँ बच्चे का रूप निखारे ।
सारे जीवन भूमि उतारे।
अंत और आगाज वही है।
कण कण मे वह बसी हुयी है।
वेदपुराणों ने यश गाया।
ऋषि मुनियों ने इसको ध्याया ।
शब्द नहीं वाणी में मेरी।
कैसे माँ महिमा गान करूँ ?
है सम्पूर्ण शब्द माँ जग में।
व्यापी वह सम्पूर्ण जगत में।
(रागिनी गर्ग रामपुर यूपी )