माँ
माँ
माँ, मैं फिर से बच्चा
बन जाना चाहता हूँ,
तेज़ आवाज़ से डरकर
घबराकर अपनी परछाई से
तेरे आँचल में छुप
जाना चाहता हूँ।
बहुत थक गया हूँ
जीवन की आपाधापी में
तनाव और अवसाद ने
जकड़ लिया है मुझको
तेरी लोरियाँ सुनकर
थपकियाँ अपने सर पर लेकर
चैन से सोना चाहता हुँ।
पैसे भरे हुये हैं पर्स में
महँगे होटल में खाकर भी
भूखा-सा महसूस करता हूँ
ढूँढता हूँ इधर उधर
मीठी रोटी की चटैया
फिर तेरे ही हाथों से
खाना चाहता हूँ।
मेरे रोने पर तेरा गुस्सा
मेरी मुस्कान पर इठलाना
मेरे बुखार पर तेरा
जमीन आसमान एक कर जाना
फिर से तेरी बाँहो में
झूलना चाहता हूँ।
माँ, मैं फिर से बच्चा
बन जाना चाहता हूँ।
©मृणाल आशुतोष
समस्तीपुर(बिहार)