माँ
माँ,
जब जब सोचता हूँ तुमको अपने नजदीक पाता हूँ,
पर अपने इस एहसास से खुद को झूठा पाता हूँ।
तुम कहती हो शब्दों को यादों का आधार मत बनाओ,
पर तुम्हें याद करते हुए जब आँखें नम हो जाती है,
इन्ही शब्दों के हाथों को अपने कंधों पे पाता हूँ,
इन्ही पन्नो के कंधों पर सर रख कर सो पाता हूँ,
जब सोचता हूँ तुमको अपने नजदीक पाता हूँ।
जब लिखता हूँ तुमको अपने नजदीक पाता हूँ।।
~ शशिकान्त शर्मा “वेद”
नई दिल्ली