माँ की ममता
माँ ममत्व की मूर्ति सदा तुम, धार पीयूष की बूँदें।
निमिष मात्र में संकट टाले, शीत तपन आँचल मूँदें।
असहनीय पीड़ा सहकर भी, आनन्दित सुन किलकारी।
पग के शूल सभी चुन लेती, पुष्प भरा पथ सुखकारी।१
रक्त बहाकर श्रम सीकर से, दूध पिला पालन करती।
विषम परिस्थितियों में भी माँ, लौहपुरुष सा बल भरती।
वन्यचरी सा जीवन जीकर, हमें तपा कुन्दन करती।
दया और करुणा भावों से, सुन्दर जीवन तुम रचती।२
सीता सम लवकुश का पालन, घोर परिश्रम करती माँ।
सुत को दे आशीष लाभ शुभ, कोमल काया धरती माँ।
द्वेषपूर्ण व्यवहार नहीं है, छल से दूर रहा करती।
पूत कपूत भले हो जाते, मातृ कुमातृ नहीं होती।३
हेय दृष्टि से तिरस्कार पा, मन में भर पीड़ा रोती।
संतति का सौभाग्य मनाती, कलुषित हृदय नहीं होती।
सत्पथ चलने हेतु हमें नित, सत्याचरण दिया करती।
उसके सदृश नहीं कोई भी, हृदय विशाला बस धरती।४
जो निज माता मातृभूमि का, भाव सहित पूजन करता।
उसे धरा पर इन्द्रासन सा, मान सभी से ही मिलता।
माँ से हैं उपकृत जग वाले, ऋण से नहीं उऋण होते।
वह अनन्त भण्डार गुणों की, नतमस्तक ईश्वर होते।५
—बृजेश पाण्डेय बृजकिशोर ‘विभात’
रीवा मध्य प्रदेश