माँ
माँ तो माँ होती है |
माँ की ममता अनमोल होती है |
जब हमारा अस्तित्व भी नहीं होती धरा में,
तब से वो हमें पहचानती है |
गर्भस्थ से ही हमें जानती है |
हमारा लात मारना ,तब से माँ को भाती है |
इसलिए तो हमें वो निस्वार्थ चाहती है |
माँ क्या होती है ? उनसे पूछो,
जिन्हें बचपन में ही वो छोड़ जाती है |
आजीवन ममत्व से वंचित,उस मन से पूछो !
कितनी ठोकरें, किस-किस मोड़ में खाती है ?
अनवरत यातनाएँ सहकर भी ,
वो हमें काबिल बनाती है |
खुद रहकर आलीशान भवन में,
नित्य हवाई सैर करते हैं |
माँ,को वृद्धाश्रम भेजकर,
किस जनम का बैर निकालते है ?
माँ, की निश्छल नैसर्गिक वात्सल्य देखो !
फिर भी,वो अपने संतानों के लिए,
तरक्की की ही माला जपती है |
–पवन कुमार मिश्र ‘अभिकर्ष ‘
बिशुनपुर,पीरटाँड़,गिरिडीह (झारखण्ड)