माँ
मातु , उर की चेतना आनंद का आकाश है |
शिशु-सुजीवन अति सुहावन बनाने का रास है|
प्रीतिमय मूरत सुपावन और सुख-सद्भावमय
भाव-जग की अमिट गरिमा,बाल-जीवन श्वास है |
लड़कपन की सुहृद गीता, आत्म-सुख-उल्लास है |
कर सके न उपमा कविवर, प्रीतिरूपी श्वास है |
सुत- सुजीवन खिलखिलाते फूल-सम सुरभित रहे|
बस यही इक कामना हो पूर्ण,ऐसी आस है |
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता
उर=हृदय