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11 Nov 2018 · 1 min read

माँ

नौकरी की तलाश में
छोड़ आया “मैं”
चिर-परिचित आशियाना
रह गई “माँ”अकेली
आँखें भर आई सोचकर
जिन हाथों में गुजारा बचपन
मैं छोड़ आया उसे गाँव में अकेला
नौकरी मिल गई मुझे
पर समय नहीं
माँ से दो बातें करने का
हाथ से बने खाना खाने का
डाकिया छोड़ गया
माँ का लिखा पत्र
दिल भर आया पढकर
नींद न आई रात को
रखा फिर माँ का पत्र सिरहाने
लगा मुझे ऐसे
माँ बालों में उंगलियाँ घूमा रही है
और समा गया ” मैं ”
नींद के आगोश में

रचनाकार-
राकेशकुमार जैनबन्धु
ग्राम-रिसालियाखेड़ा,125103
जिला-सिरसा,हरियाणा
9466539399

13 Likes · 62 Comments · 1483 Views
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