माँ
माँ तुम ममता मेँ लोरी हो, ममता की मूरत हो,
अनुशासन मे लाठी हो, सूखे की बारिस की बूँदें हो,
दिखती काँच हो रहती हीरा हो, तुम कुम्हार का घडा हो,
अँदर से हाथ लगाती, बाहर से ढोकती हो,
माँ शब्द है कितना सच्चा, कितना मधुर कितना मीठा,
न कोई स्वार्थ न कोई सौदा, इनसे बडा कोई न दूजा,
भगवानोँ को भी ये कर्ज चुकाने, माँ की कोख मे आना पडता,
तू ही लक्ष्मी, तू ही सरस्वती, तू ही विद्या दाता है,
तू ही गौरी,तू हीअनसुइया, तू ही अन्नपूर्णा माता है,
इनसे से ही होली, इनसे से ही दीवाली, इनसे से ही रक्षाबंधन है,
ये ही रिद्धी, ये ही सिद्धि, ये ही विश्व स्वरुपा है,
ये ही सृष्टि की भाग्य विधाता, ये ही सँहारकारी है,
ये ही दुर्गा, ये चँडी, ये ही काली माता है,
माँ के आशीषोँ को ले लेता, स्वर्ग यही पर पाता है,
अर्चना कटारे
शहडोल (म प्र)