माँ
मख़मल का गद्दा भी जैसे किसी पत्थर सा लगता है..
माँ के बिना तो मुझे ये संसार ही बदतर सा लगता है…
जिसने नहीं की सेवा माँ बाप की अपने जीवन में..
वो हो चाहे दौलतमंद मुझे तो वो बेज़र सा लगता है…
जिसने चलना सिखाया हाथ थाम के बचपन में तुझे..
जवानी आ गई तो अब वही तुझे ज़हर सा लगता है…
मैंने कभी खुदा से माँगा ना कुछ भी दुआओं में अपने..
ये खुशीयाँ मुझे अपने माँ-बाप के मेहर सा लगता है…
चन्दन शर्मा
कटक,उड़ीसा