माँ
माँ की ममता है सघन, इसकी क्या है थाह।
माँ के चरणों से अधिक, रहे न कोई चाह।।
माँ का दिया प्रसाद है, जीवन अपना जान।
कर इसकी आराधना, जीतो सकल जहान।।
माँ तेरे तप त्याग से, निर्मित है यह देह।
आँखें तेरी हैं सजल, हर पल बरसे नेह।।
पोथी पढ़ लो ज्ञान के, चाहे कितनी बार।
मातृ-प्रेम बिन जिंदगी, होती है बेकार।।
मात-पिता के नाम जब, कम पड़ती हो गेह।
समझ सका कब मूढ़मति, माँ की ममता, नेह।।
माँ की ममता का यहाँ, कौन चुकाये मोल।
मात अबला तरस रही, सुनने को सुत बोल।।
माँ की महिमा के सुनो, गाये गीत सुनील।
जीवन के इस मर्म को, रखो बनाकर शील।।
सुनील कुमार झा
नोएडा