माँँ
दो अक्षरों का शब्द लघु “माँ ” फलक नभ सा लिए विस्तार ,
जननी ,पालिका ,मार्गदर्शिका,प्रथम पाठ की माँ शिक्षिका .
नवाँकुर की जीवनदात्री ,कितनी छवियाँ सहज उभरती ,
स्मृति में जब -जब माँ छाई मानस में मानो चली पुरवाई,
शीतल झरने सी स्नेहमयी माँ वात्सल्य की निर्झरणी माँ,
गाढे की सच्ची साथी माँ कष्टों से सदा बचाती माँ ,
मेरे जीवन की आधार स्तम्भ, गढा चरित्र मेरा साकार ,
जीवन संग्राम हित योद्धा गढती माँ धरा पर ईश अवतार,
निज सुख की तनिक ना परवाह श्रम-कणों के पहने हार,
स्पर्श में आह्लाद आलौकिक ,दुःख संत्रास हो जाए तिरोहित,
माँ देती निष्काम भाव से हमको संस्कारों का अमूल्य उपहार,
जननी धात्री चरित्र निर्मात्री,संस्कारों की संवाहक है माँ ,
उनकी प्रतिछाया हूँ मैं सद्भभाव संस्कार की लिपि ,
माँ के ऋण से उऋण नहीं गर नयी पीढियों को ना दें संस्कार,
पीढी दर पीढी चले परम्परा माँ है सृष्टि की आधार,
है वजूद सृष्टि का जब तक माँ की महता अपरम्पार,
चाँदनी त्यागे शीतलता अपनी,चाहे त्यागे सूर्य तेज ,
माँ की महता कम ना होगी छोडे चाहे वायु वेग,
माँ का महत्व रहेगा जग में चिरकाल तक सदा सदैव ,
धरा सी धात्री जननी निर्मात्री संस्कारों की वाहक है माँ।
सावित्री प्रकाश
नोएडा ,उत्तर प्रदेश।