माँ
माँ व्रह्मा विष्णु महेश है, माँ सृष्टि में सबसे विशेष है।
माँ ममता का पर्याय है, माँ का त्याग दया अशेष है।।
माँ गीता है माँ कुरान है, माँ ऋचा है माँ अजान है।
माँ करती सृष्टि की रचना, माँ धरती पर भगवान है।।
माँ विश्वनाथ की काशी है, माँ जग में तू अविनाशी है।
माँ देवों की भी जननी है, माँ देवलोक की वासी है।।
माँ सूरज का प्रखर प्रकाश,माँ धबल शशि सा है लिवास।
माँ ही तारों में ध्रुव तारा, माँ हरदम मेरे आस-पास।।
माँ दुर्गा काली की शक्ति, माँ लक्ष्मी स्वारूपा संपत्ति।
माँ स्वर की देवी शारदा, माँ के चरणों में ही मुक्ति।।
माँ धरती पर है देवदूत, माँ प्रभु का ही है प्रतिरूप।।
माँ ही करती लालन पालन, माँ बच्चों में रहे अभिभूत।।
माँ ही जीवन दायनी है, माँ तू ही पतित पावनी है।।
माँ त्याग तपस्या की मूरत, माँ मेरी कामायनी है।।
माँ दे बच्चों को संस्कार, माँ से ही चलता परिवार।
माँ भवसागर पार लगाती, माँ ही किश्ती अरु पतवार।।
माँ ‘कल्प’ हृदय में विराजित है, मांँ से ही घर अनुशासित है।
माँ पर मैं क्या लिख पाऊँगा, माँ शब्द सदा अपरिभाषित है।।
✍?अरविंद राजपूत ‘कल्प’
शिक्षक
शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय साईंखेड़ा