माँ
माँ का जीवन, मातृ-वाणी , मातु की आवाज है |
रोम पुलकित, मात की भाषा का उर पर राजहै|
इस तरह से तेरा जाना , रक्त कुछ कम कर गया |
भेद नहिं सद् विचारों में सु जननी अवतार है|
जब तलक माँ विचारों में,तभी तक यह ज्ञान है|
मानव सुहित की प्रार्थना और शुभ मुस्कान है |
गई जननी, सब गया, मैं ना रहूँ, क्या भेद है ?
आप बिन, यह मनुज जीवन, मात्र भ्रम-जग-चाम है|
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता
भेद=अंतर